2019
सेवकाई दूसरों को उस प्रकार देखना है जैसा उद्धारकर्ता देखता है
जून 2019


Image
ministering

सेवकाई सिद्धांत, जून 2019

सेवकाई दूसरों को उस प्रकार देखना है जैसा उद्धारकर्ता देखता है

यीशु ने अपना अधिकतर समय उनके साथ बिताया था जो जिन्हें भिन्न समझा जाता था; उसने उनकी दिव्य क्षमता को देखा था ।

उद्धारकर्ता के समान सेवा करने के अपने प्रयासों में, हमें उनकी सेवा करने को कहा जा सकता है जो हमसे भिन्न हैं । यह हमें सीखने और प्रगति करने का अवसर देता है ।

सांस्कृतिक, शैक्षणिक, जाति, आर्थिक, आयु, पूर्व या वर्तमान व्यवहार, या अन्य भिन्नताएं किसी को जानने से पहले उनके बारे में निर्णय लेना सरल कर सकती हैं । इस प्रकार पहले से निर्णय लेना पूर्वधारणा बनाने का कारण होता है, और उद्धारकर्ता ने इसके विरूद्ध चेतावनी दी थी देखें 1 शमूएल 16:7;यहून्ना 7:24) ।

क्या हम भिन्नताओं से हटकर और जैसा उद्धारकर्ता देखता है उस प्रकार देख सकते हैं ? दूसरे जैसे वे हैं और वे क्या बन सकते हैं, से प्रेम करना किस प्रकार सीख सकते हैं ?

देखना और प्रेम करना

बाइबिल इसी प्रकार के अमीर युवक की कहानी बताती है जिसे पूछा था अनंत जीवन कैसे प्राप्त करना है: “यीशु ने उस पर दृष्टि करके उस से प्रेम किया, और उससे कहा, तुझ में एक बात की घटी है; जा, जो कुछ तेरा है, उसे बेच कर कंगालों को दे, और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछ हो ले” (मरकुस 10:21)

जब सत्तर के एल्डर एस. मार्क पामर ने कुछ वर्ष पूर्व इस पद को पढ़ा था, तो कहानी का एक नया हिस्सा अचानक उनके मन में आया था ।

‘फिर यीशु ने दृष्टि करके उससे प्रेम किया ।’

जब मैंने इन शब्दों को सुना तो मेरे मन में सजीव चित्रण उभर आया कि प्रभु रूका और उस युवक की ओर देखा । ध्यान से और गहराई से उस पर दृष्टि डालते हुए, उसकी भलाई और उसकी क्षमता को पहचानते हुए, उसकी अत्याधिक अवश्यकता को समझते हुए ।

“फिर ये सरल शब्द—यीशु ने उससे प्रेम किया । उसने इस भले युवक के प्रति अत्याधिक प्रेम और दया महसूस की, और इस प्रेम के कारण और इस प्रेम से यीशु ने उसके विषय में अधिक पूछा । मैंने चित्रण किया इस युवक ने कैसा महसूस किया होगा जब इस प्रकार के प्रेम के वशीभूत उसे कुछ ऐसा करने को कहा गया जोकि बहुत कठिन था जैसे अपना सबकुछ बेचना और कंगालों को देना । …

“[मैंने स्वयं से पूछा] ‘मैं किस प्रकार मसीह समान प्रेम से इतना परिपूर्ण हो सकता हूं कि [दूसरे] मेरे द्वारा परमेश्वर के प्रेम को महसूस कर सकते हैं और बदलना चाहते हैं ?’ मैं किस प्रकार [अपने आस-पास के लोगों को] को उस प्रकार देख सकता हूं जैसा प्रभु ने इस अमीर युवक को देखा था, उन्हें उस प्रकार देखना वे वास्तव में क्या हैं और वे क्या बन सकते हैं, बजाए इसके वे क्या करते या नहीं करते हैं ? मैं किस प्रकार उद्धारकर्ता के समान बन सकता हूं ?” 1

दूसरों को देखना सीखना

दूसरों को देखना जिस प्रकार उद्धारकर्ता देखता है, सीखने से उत्तम प्रतिफल मिलते हैं । नीचे कुछ सुझाव हैं जो इस लक्ष्य के लिये कार्य करने में मदद कर सकते हैं ।

  • उन्हें जानें
    लोगों को उनके बाहरी रूप के परे जानने का प्रयास करें । ध्यान रखें कि संबंध बनाने में समय लगता है और निष्कपट प्रयास करने पड़ते हैं । (देखें अगस्त 2018 Ministering Principles article “Building Meaningful Relationships” for help.)

  • अपनी जांच करें
    उन निर्णयों को पर ध्यान दें जो आप शायद जाने या अनजाने रूप से कर रहे हों । उन धारणाओं पर ध्यान देखें जो आप दूसरों के बारे में बनाते हैं और समझने का प्रयास करें आप क्यों उनके विषय में ऐसा सोचते हैं ।

  • निर्णय न लें
    महसूस करें कि परिस्थितियां व्यक्ति की पहचान नहीं बन सकती हैं । स्वयं को उनके स्थान पर रखें और विचार करें कि उन्हीं परिस्थितियों में आप क्या चाहेंगें कि लोग आपको किस प्रकार देखें । किसी के चुनाव और व्यवहार को उनकी वास्तविक योग्यता और दिव्य क्षमता से अलग करने से हमें उन्हें उस प्रकार देखने में मदद मिलती है जैसा उद्धारकर्ता उन्हें देखता है ।

  • उनसे प्रेम करने के लिये प्रार्थना करें
    नाम लेकर उनके लिये नियमितरूप से प्रार्थना करें और सच्ची मित्रता होने के लिये धैर्य रखें । अपनी सेवा पर प्रार्थनापूर्वक दृष्टि डालें । जो आप कर रहे हैं और जो उनकी आवश्यकता है, क्या उसके बीच कोई अंतर है ?

यीशु ने अपना समय जीवन के कई प्रकार के लोगों के साथ बिताया था: अमीर, गरीब, शासक, और आम व्यक्ति । वह अक्सर दूसरों की गलत धारणाओं का शिकार हुआ था जब उन्होंने उसको और उसकी विनीत या महत्वहीन परिस्थितियों को देखा था । “न उसका रूप ही हमें ऐसा दिखाई पड़ा कि हम उसको चाहते । … वह तुच्छ जाना गया, और हमने उसका मूल्य न जाना” (यशायाह 53:2-3) ।

मसीह समान दृष्टि

एक बहन मसीह की आंखों से पड़ोसी को देखने को सीखने की यह कहानी बांटती है:

“जूलिया (नाम बदल दिया गया है) मेरे पास रहती थी और लगता था कि उसका कोई मित्र नहीं था । वह हमेशा परेशान और गुस्से में दिखती थी । उसके बावजूद, मैंने उससे मित्रता करने का फैसला किया । सिर्फ चलते-फिरते आम मित्र नहीं, बल्कि सच्चे मित्र । जब भी मैं उसे देखती, मैं उससे बात करती थी और जो भी वह करती थी, उसमें दिलचस्पी दिखाती थी । धीरे-धीरे, मैंने उसके साथ मित्रता कायम की थी, जिससे मेरे दिल में खुशी आई थी ।

“एक दिन, मैंने जूलिया से मिलने का फैसला किया और उससे गिरजे न आने के उसके फैसले के बारे में पूछा ।

“मुझे पता चला कि उसका कोई परिवार या रिश्तेदार नहीं है । उसका एक भाई है, जो बहुत दूर रहता है, वह साल में केवल एक बार फोन करके उससे बात करता है । जब मैंने उससे बात की तो उसने अपने परिवार और गिरजे के बारे में अपनी कड़वाहट, क्रोध और कुंठाओं को बाहर निकाल दिया, इस बहन के प्रति करुणा और प्रेम की भावना बहुत दृढ़ता से मेरे ऊपर आ गई । मैंने उसके दर्द और निराशा को महसूस किया । मुझे महसूस हुआ कि उसका जीवन कितना अकेला था । यह ऐसा था मानो मैंने अपने पीछे एक शांत वाक्य सुना हो: मैं भी उससे प्यार करता हूं । उसे प्यार और सम्मान दो ।’

“मैं बैठ गई और तब तक सुनती रही जब तक वह बात करती रही । मुझे उसके प्रति प्रेम और करुणा महसूस हुई । यह एक बहन है जिसे कभी नहीं पता चलता कि प्रेम किया जाना क्या होता है । अचानक मैं उसे अधिक गहराई से समझ पाई थी । मुझे उसे मिलने की अनुमति देने के लिए मैंने उसे धन्यवाद दिया, और मैंने उसे गले लगाया और उसे प्रेम और सम्मान से विदा किया । वह कभी नहीं जान पाएगी कि उस भेंट से उसने मुझे कितना छुआ था । स्वर्गीय पिता ने मेरी आंखें खोली हैं और मुझे सीखाया है कि मैं बढ़ी हुई करुणा के साथ प्रेम करने की क्षमता रखती थी । मैं न केवल उसका मित्र बनने, बल्कि उसका परिवार बनने के अपने संकल्प में भी दृढ़ हूं ।”

किसी और के जीवन में आमंत्रित किया जाना एक पवित्र बात है । प्रार्थना, धैर्य और आत्मा की मदद से, हम ऐसा करने के लिए मसीहसमान दृष्टि से सीख सकते हैं ।

विवरण

  1. S. Mark Palmer, “Then Jesus Beholding Him Loved Him,” Liahona, मई 2017, 115 ।